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बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

अन्तिम कालांश

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कक्षा  का अन्तिम दिन था 
सत्र  के अन्तिम कालांश का अंत  था 
 आँखे कुछ भरी हुई सी थीं 
पर दिल कुछ खाली खाली था

उभर के आया वह पहला दिन 
हर चेहरा अजनबी  सा  था 
आज यहाँ  हर एक का चेहरा 
दिल में  मढ़ा हुआ था 

कुछ शरारती कुछ चंचल आँखें 
कुछ मौन कुछ व्याकुल आँखें 
 सब स्थिर सब ठगी हुई सी 
सबमें स्नेह सजा हुआ था 

विश्वास ममत्व का ताना बाना 
हर एक दिल पर चढ़ा हुआ था 
दिन दिन सींचा एक एक फूल 
बगिया बन कर खिला हुआ था 

शब्द  कहाँ था, भाव था ऊपर 
बोल सीमित, भाव से गढ़ा  हुआ था
कहीं सुख था कहीं संताप 
हीरे गढ़े थे देना था आज 

मोह ऐसा न्यारा  बंधन  है 
छुटाए  कभी नहीं छुटता 
चाहत थी दोहराव की मन में 
उनके भी और मेरे मन में भी 

परिवर्तन है दुनिया का नियम 
प्रगति का शाश्वत आधार 
संतोष मुझे सजाना था 
आशीर्वचनों ,शुभकामनाओं  के साथ 




चित्र साभार गूगल से 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा परिवर्तन संसार का नियम है ... समय गुज़र जाता है यादें रह जाती हैं ...

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    उत्तर
    1. दिगम्बर जी । आपको प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से धन्यवाद ।देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ ।

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