आदर है एक भाव का नाम,
स्वाभाविक धर्म का यह धाम।
यह किए कराए न आता,
कर्ता के हृदय में सहज समाता।
आदर करो उस सूर्य का,
जो बिना थके चलता रहता।
निस्वार्थ भाव से बढ़ता जाता,
चैन की साँस कभी न लेता।
आदर करो उस वृक्ष का,
जो मानवता लिए जीते जाते।
आँख खोली, बाँटा जीवन,
मृत्यु हमें देते जाते।
आदर करो उस नारी का,
जिससे धरती का वज़ूद।
त्याग, ममत्व, सौंदर्य धरती का,
ईश्वर का अनोखा रूप।
आदर करो उस गुरु धर्म का,
जो है शिष्य का अभिमान।
विश्वास,
श्रद्धा , आज्ञापालन,
डालते इसमें स्वत: प्राण।
आदर करो उस धर्म का,
सदैव बनाता हमें महान।
अच्छा, बुरा, सही, गलत,
पाप - पुण्य का देता ज्ञान।
आदर करो उस देशप्रेमी का,
देश अन्न का कर्ज चुकाता।
जीते कर्म करता जाता,
मर के नाम अमर कर जाता।
आदर करो उस परमपिता का,
जिसका अरूप होता स्वरूप।
दिखता कभी नहीं हमको,
देता हमको बल, बुद्धि, रूप।
आदर करो उस स्वत: अस्तित्व का,
जो कण है उस परमपिता का।
अक्स बनाए स्वयं को उसका,
धर्म सजाए , कर्म के रूप।