एक छोटी सी लड़की थी हमेशा खुश रहती थी जब दस साल की थी ,उसकी माँ गुजर गईं।वह बहुत दुखी रहने लगी ।पिताजी ने दूसरी शादी कर ली थी। पूरे संसार में अपने आप को अकेला महसूस करने लगी ।
उसकी दादी ही उसकी सबसे बड़ी शुभचिंतक थीं। जब भी बहुत उदास होती, दादी की गोद में सिर रख कर सो जाती थी ।जब तेरह साल की थी ।उसके स्कूल में कुछ लोग आए और उन्होंने बताया जिन लोगों को तैराकी आती है ,वे अपना नाम दे दें । एक महीने बाद उनके बीच में एक प्रतियोगिता होगी ।जो भी जीतेगा उसे दिल्ली आगे की प्रतियोगिता में भेजा जाएगा। उसे लड़की ने अपना नाम लिखवा दिया ।
जब उसने दादी जी को यह बात बताई ।वह बहुत खुश हुईं। दादी जी ने तैराकी स्कूल में लड़की का नाम लिखवा दिया ।लड़की ने जी-जान लगाकर तैराकी सीखना शुरू किया ।उसे उसकी मंजिल मिल गई थी।
पानी में घुसते ही वह मछली बन जाती थी ।इधर से उधर स्विमिंग पूल में घंटों तैरा करती थी ।पानी उसे मां की गोद की तरह संतोष प्रदान करता था। आखिर वह दिन आ गया जब यह प्रतियोगिता होनी थी ।उसकी एकाग्रता ने और लक्ष्य के प्रति निष्ठा ने आखिरकार उसके हाथ में पदक पकड़ा ही दिया। साथ ही दिल्ली जाने का मौका भी। फिर उससे कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा ।कदम दर कदम आगे बढ़ते-बढ़ते उस लक्ष्य को छू लिया था ।जो उसकी खुशी बन चुकी थी।
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