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सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

अतिथि देवता

 

अतिथि का सत्कार करो ,
'अतिथि देवता' भाव लिए।
 गाँव, शहर या देश -विदेश 
का ,रहो हरदम तैयार खड़े।
 गाँव का हो तो  सोंधाहट 
की ,कुछ मीठी खुशबू लेना ;
शहर का हो तो हँसी -
ठहाके से ही घर भर लेना ।
अगर कहीं विदेशी हो तो 
उसको गले लगाना तुम ।
संस्कृति ,वेश ,चाल से उसकी ,
कुछ अच्छा अपनाना तुम।
 चाल- चलन और सुविचार की 
कुछ सौगात बढ़ाना तुम ।
मुस्कुराहटों के सौदागर से ,
हर दिल में बस जाना तुम।
सभ्यता की यह धरोहर ,
थाती सा गले लगाना तुम ।
ना केवल अपने अपनाना
 पीढ़ी को सौंप के जाना तुम।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार 

मंगलवार, 5 मार्च 2019

लाल परी की भूल

आज लाल परी अपने दोनों पंख फैला कर आसमान में उड़ जरूर रही थी पर उदास थी और थोड़ी गुस्सा भी। परी रानी ने आज उसे महल से बाहर रहने का आदेश दिया था।  परी महल में आज बहुत बड़ा उत्सव था।  परियाँ  बन सँवर  रही थीं पर लाल परी उदास सी  बाहर ही घूम  रही थी। संगीत का हल्का-हल्का स्वर महल से  उस तक पहुँच रहा था जो उसे महल की तरफ खींच रहा था।  गहरी साँस  भर कर एक लम्बी उड़ान भरी और आसमान को पार करते हुए धरती पर उतर आई।  वह एक  बाग़ में पहुंची जहाँ बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे। वह वहीं  पर छिप कर  खेल देखने लगी।  सभी बच्चों की किलकारियों  में वह अपना दुःख भूल गई और उन्हें देखने लगी।  तभी एक लड़की  सोनी की नज़र  लाल परी के चमकते लाल पंख पर पड़ी।  सोनी ने समझा यह कोई सुन्दर फूल है वह  देखने आई तो लाल परी को सामने देख चौंक गई।  वह  ख़ुशी से चीखी।  सभी बच्चे सोनी की चीख सुनकर उसके पास आए। लाल परी को लाल वस्त्र लाल ,लाल पंख ,  चमकीले लाल मुकुट और  सुन्दर चेहरे को देखकर आश्चर्यचकित रह गए।   अब लाल परी को भी उनको अपना परिचय देना पड़ा।  जैसे ही  पता चला वह लाल परी है, वे  खुशी से उछलने लगे।    दादी से उन्होंने लाल परी के  बारे में सुना था कि  वह सभी की इच्छाएँ पूरा करती है. सभी अपनी अपनी इच्छाएँ  उसे बताने लगे।   लाल परी जादू की छड़ी घुमाया   तो  चिंटू हवा की सैर करने लगा।  अभी वह उतरा ही था कि  लाल परी की छड़ी फिर घूमी  इस बार एक रसीला आम सोनी की गोदी में आ गिरा। इस बार जैसे ही उसने छड़ी घुमाई बाग के  सभी फूल जगमग रोशन हो गए। उस जादुई दुनिया में बच्चे मानो  अपना घर भूल ही गए थे और लाल परी  महल का उत्सव और अपना दुःख।

फूलों का प्रकाश जैसे ही कुछ कम हुआ तारे  जगमगाने  लगे।  आकाश में चमकते तारे देखते ही बच्चे मानो सोते से जगे।  लाल परी  को अलविदा कहते हुए घर वापस जाने को मुड़  चले।  लाल परी  उदास हो गई।  सोनी से लाल परी  की उदासी छिपी न रही उसने उससे  उदासी का कारण पूछा। लाल परी  ने रानी परी की बात कह सुनाई।  सोनी ने कहा, "जरूर आपने कोई शरारत  की होगी।  जब मैं  शरारत करती हूँ  तो माँ मुझे सजा देती है।" लाल परी ने सफाई देते हुए  कहा ,"मैंने कोई शरारत नहीं की। "  सोनी ने धीरे से मुस्कराते  हुए कहा ,"कुछ तो ! " लाल पारी ने छड़ी के साथ अपनी नजर भी नीची करती हुए कहा  ," हाँ ! वह नोटू  बौना परी महल  के    सबसे ऊँची घडी की सफाई कर  रहा था।  मैंने नीचे  से सीढ़ी  पकड़ कर हिलाने   लगी तो वह घडी की सुई पकड़ कर ऐसे लटका कि  सुई टूट गई। घडी रुक जाने की वजह से समय भी रुक गया। परी लोक में सब कुछ थम  गया।  रानी परी को  जादू से सब कुछ सही करना पड़ा इसलिए वह मुझसे नाराज हो गईं।  गलती तो नोटू  बौने  ने भी की फिर उसे   भी महल से  बाहर  भेजना चाहिए था। "सोनी ने कहा ," मेरी माँ कहती है कि अनजाने में की गई गलती की माफ़ी दी जा सकती है पर जो गलती हमने जान बूझ कर की हो वह सजा को योग्य होती है।  आप बताइए किसने  गलती अनजाने में की  और किसने जानबूझ कर ?" लाल परी  ने धीरे से कहा , "मैंने गलती जानबूझ कर की , नोटू  बौने  ने तो बचने के लिए सुई पकड़ी थी ।क्या मैं  रानी परी   माफ़ी माँगूँ  तो वह मुझे माफ़ कर देंगी  " सोनी ने फिर कहा , "माँ ने मुझे बताया हैकि सच्चे दिल से किया गया कोई भी काम सफ़ल होता है।  लाल परी ने  सोनी को छड़ी घुमा कर पलक  झपकते उसके घर पहुंचा दिया और उसकी  माँ को धन्यवाद देने  को कहा।  आज उनकी सीखों के कारण  ही उसने परी लोक  की सबसे अच्छी परी बनने का निश्चय लिया था।  वह अपने दोनों पंख फैला कर परी  रानी से माफ़ी मांगने के लिए बदलाओं को पार कर  परी  लोक की ओर  उड़ चली।

https://audio.storymirror.com/audio/story/hindi/laal-prii-kii-bhuul/c79f935e-77ff-4a96-a1be-89951bb2a34a/?utm_campaign=website


शनिवार, 10 मार्च 2018

चिंटू और भूरा



चंपकवन के एक घने से जंगल में अनेक छोटे- छोटे जानवरों के साथ ही एक प्यारा सा खरगोश भी रहता था,चिंटू खरगोश।उसके छोटे- छोटे दो दाँत  उसकी भोली, उजली से खूबसूरती को और भी बढ़ा देते थे।  सवेरे उठकर ढूँढ- ढूँढकर गाजर खाता था और फिर दौड़कर सबकी मदद में जुट                                        जाताथा।



उसी जगह पर एक बड़ा सा  जंगली चूहा रहता था,नाम था भूरा चूहा। उसके सामने के दो दाँतों को देखकर लोग डर  जाते थे। जब भी वह चिंटू खरगोश को सबकी मदद करते देखता मुँह  बिचका कर  कहता "स्वागत करो , आ गए परोपकारी भाई। "चिंटू हँसकर उसकी बात
 टालकर चल देता।




एक बार एक किसान और उसकी बेटी जंगल से गुजर रहे थे।  भूरा चूहा उस छोटी लड़की को देखकर  बहुत खुश हुआ। 







अपनी आदत के अनुसार वह तेजी से दौड़ता हुआ उस लड़की के पैर पर चढ़ा और कुछ कदम आगे बढ़कर, मुड़कर लड़की को चिल्लाते हुए देखकर ,ताली मारकर हँसने लगा।





किसान यह देखकर नाराज़ हो गया और अपनी लाठी चूहे पर निशाना लगाकर पटकने लगा। भूरा चूहा जान बचने के लिए इधर उधर भागने लगा। 




भूरा  चूहे  की जान खतरे में देखकर अचानक से चिंटू खरगोश  लड़की के पास आ गया।  उसके आगे -पीछे घूमकर कलाबाजियाँ   दिखने  लगा। इतने प्यारे चिंटू को सामने देख लड़की खिलखिलाकर हँसने  लगी और उसे पकड़ने के लिए पीछे दौड़ी। किसान लड़की की हँसी सुनकर ज्योंही पलटा, भूरा चूहे  को भागने का  मौका मिल गया। भूरा के भागते ही चिंटू भी भाग  निकला।



भूरा की जान उस चिंटू ने बचाई जिसका वह दिन- रात  मजाक उडाता था। उसने चिंटू को धन्यवाद दिया और किसी को न डराने  की  कसम खाई। 




पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल   


बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

कबूतर

संदेशे पहुंचाने को मैं,
दूर देश की सैर कर आता।

जब भी भूख लगे मुझको,
गेहूँ , चावल ,रोटी खाता ।

सफ़ेद रंग मेरा सभी को भाता,
शांति संदेश मैं ही पढ़वाता ।

कोयल


मैं कोयल काले रंगत की 
पर मन न मेरा काला 
मीठे-मीठे बोल, बोलकर, 
कर दूँ मन मतवाला।


कौआ नहीं है मेरा भइया,
माना रंग है उसका काला।
काँव-काँव का कर्कश बाजा,
कान हमेशा बंद करवाता ।

सच कहती हूँ प्यारे बच्चों ,
तुम मेरे ही गुण अपनाना।
ऊँच-नीच का भेद भूलकर,
गीत से मीठे बोल सुनाना।
पल्लवी गोयल 
(चित्र गूगल से साभार )





सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

जी मेल


मेलों में एक मेल जो आई
नहीं थी ये रेल ।

संदेश  सैकेंडों में  पहुंचाती ,

किए बिना हेल-मेल।

नाम डालो, धाम  डालो

टिकट का नहीं खेल।

नहीं कोई और ये अपनी

नाम इसका 'जी मेल'।

पल्लवी गोयल
(चित्र गूगल से साभार )





शुक्रवार, 12 मई 2017

मेरा घर




नील  गगन की नीली छाँव के
कुछ तारों को नीचे,
नीले  तारे  में गाँव हमारा,
हम पृथ्वी इसको कहते

तीन भाग में सागर का
पानी , ठाठें मार लहराता 
गहराई में कितने ही अंदर,
रत्न और जीव  छिपाता

कलकल कर  बर्फ की नदियाँ ,
झरने की सीढ़ी  उतरतीं 
मैदान ,खेत इंसानों की
दुनिया में जीवन भरतीं

नीले , पीले , लाल ,गुलाबी
फूल खिल -खिल लहराते 
गेहूँ ज्वार धान बाजरा
बाली बन तन जाते 

आसमान में उड़ते खग कुल
छतरी सा आकार  बनाते 
रात को कभी लोरियाँ गाते
प्रातः वंदन से हमें उठाते 

सीधे भोले पशु यहाँ के
भोजन की खोज में जाते 
हम इंसान खुली आँखों से
चाँद छूने की जिद में जुट जाते
                                            पल्लवी गोयल                                                                                                   
चित्र साभार गूगल