अतिथि का सत्कार करो ,
'अतिथि देवता' भाव लिए।
गाँव, शहर या देश -विदेश
का ,रहो हरदम तैयार खड़े।
गाँव का हो तो सोंधाहट
की ,कुछ मीठी खुशबू लेना ;
शहर का हो तो हँसी -
ठहाके से ही घर भर लेना ।
अगर कहीं विदेशी हो तो
उसको गले लगाना तुम ।
संस्कृति ,वेश ,चाल से उसकी ,
कुछ अच्छा अपनाना तुम।
चाल- चलन और सुविचार की
कुछ सौगात बढ़ाना तुम ।
मुस्कुराहटों के सौदागर से ,
हर दिल में बस जाना तुम।
सभ्यता की यह धरोहर ,
थाती सा गले लगाना तुम ।
ना केवल अपने अपनाना
पीढ़ी को सौंप के जाना तुम।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीया,
हटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है ।प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार ।